आज हम बीमा में फ्री लुक पीरियड पर चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि पॉलिसी होल्डर के लिए इसके क्या फायदे हैं, इसको क्यों लाया गया, और इसको हम कब उपयोग कर सकते हैं।
बीमा बाजार के शुरुआती दिनों में बहुत अधिक तादाद में बीमा धारकों के साथ नकली बीमा कंपनियों द्वारा धोखा किया गया था। नकली बीमा कंपनियां ग्राहक से प्रीमियम तो ले लेती थी लेकिन उसके बदले में उनको किसी तरह के लाभ नहीं मिलते थे। इसी तरह कुछ रजिस्टर्ड बीमा कंपनियां और उनके एजेंट भी ग्राहकों के साथ धोखा करते हुए पाए गए जैसे कि ग्राहक को गलत पॉलिसी बेच दी जाती थी।
इस तरह की धोखाधड़ीओं के कारण बहुत लोग बीमा पॉलिसी को खरीदने से डरने लगे। लोगों का बीमा में फिर से विश्वास बढ़ाने के लिए हर देश की सरकार ने एक विशेष अथॉरिटी का गठन किया जैसे कि भारत की आईआरडीएआई संस्था। इन संस्थाओं का काम बीमा बाजार को सही तरह से चलाना और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए अच्छे नियम बनाना था।
इन संस्थाओं के कड़े नियमों की वजह से आज फिर से बीमा बाजार बहुत तेजी से विस्तार कर रहा है। आज कोई भी निश्चिंत होकर बीमा पॉलिसी खरीद सकता है क्योंकि उसको पता है कि उसके हितों की रक्षा करने के लिए आईआरडीएआई जैसी संस्था है।
आईआरडीएआई ने बहुत सारे बीमा नियम इंश्योरेंस कंपनियों के लिए जारी किए हैं जिनमें से एक है फ्री लुक अवधि। चलिए देखते हैं फ्री लुक पीरियड क्या होता है और इसके क्या महत्त्व है।

फ्री लुक पीरियड क्या होता है? -Free Look Period
फ्री लुक पीरियड को कूलिंग पीरियड या एग्जामिनेशन पीरियड भी कहा जाता है। फ्री लुक अवधि एक ऐसी अवधि होती है जिसमें बीमा धारक बिना किसी तरह के जुर्माने के अपनी बीमा पॉलिसी कंपनी को वापिस करके अपना प्रीमियम वापिस ले सकता है।
फ्री लुक पीरियड की अवधि आमतौर पर 10 दिन से लेकर 15 दिन तक होती है और इसमें बीमा कंपनी को बिना किसी सरेंडर चार्जर्स के ग्राहक को प्रीमियम वापस करना होता है।
चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं मान लीजिए जॉन ने एक जीवन बीमा पॉलिसी खरीदी है और उसे तीन-चार दिन बाद अपने पॉलिसी दस्तावेज मिल जाते हैं। अब जॉन अपनी पॉलिसी में दी गई शर्तों को पड़ता है और उसमें उसे लगता है कि कुछ शर्ते उसकी जीवन बीमा जरूरतों को पूरा नहीं करती। इस संबंध में जॉन अपने वकील और फाइनेंशियल एडवाइजर से भी सलाह लेता है और वह भी उसे कोई और पॉलिसी खरीदने को कहते हैं। इस स्थिति में जॉन अपनी पॉलिसी बेफिक्र होकर वह किस कर सकता है क्योंकि उसकी पॉलिसी अभी फ्री लुक पीरियड में चल रही है। ऐसा करने पर बीमा कंपनी भी उसे मना नहीं कर सकती और उसको जॉन का प्रीमियम वापस करना पड़ेगा।
यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि फ्री लुक पीरियड की अवधि बीमा धारक को पॉलिसी दस्तावेज मिलने के बाद शुरू होती है ना कि जिस दिन पॉलिसी खरीदी गई हो।
फ्री लुक पीरियड के दौरान पॉलिसी धारक अपनी पॉलिसी में दी गई शर्तों को अच्छी तरह से पढ़ सकता है समझ सकता है और अपने वकील या फाइनेंसियल एडवाइजर से सलाह ले सकता है कि ली गई पॉलिसी उसके लिए सही है या नहीं।
पॉलिसी दस्तावेजों में दी गई शर्तों से अगर बीमा धारक संतुष्ट नहीं है या उसको लगता है कि यह उसके लिए सही पॉलिसी नहीं है तो बीमा धारक अपनी पॉलिसी फ्री लुक पीरियड के दौरान वापिस करके अपना दिया गया प्रीमियम वापस ले सकता है। ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी को बिना किसी सवाल जवाब के प्रीमियम वापस करना होता है।
फ्री लुक पीरियड या कूलिंग पीरियड के दौरान पॉलिसी के बारे में अधिक जानने के लिए ग्राहक पॉलिसी से संबंधित बीमाकर्ता से सवाल पूछ सकता है।
एग्जामिनेशन पीरियड जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और कई बार मोटर बीमा के लिए भी उपलब्ध होता है।
कूलिंग पीरियड या फ्री लुक पीरियड का महत्व
इसकी मदद से ग्राहक को अपनी पॉलिसी के बारे में अच्छी तरह जानने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है। कानूनी अनुबंध होने की वजह से यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि दोनों पार्टियां इंश्योरेंस कंपनी और पॉलिसी धारक दोनों ही अच्छी तरह से दिए गए नियमों और शर्तों का सही से पालन करें।
ग्राहक को पॉलिसी दस्तावेज मिलने के बाद कूलिंग पीरियड शुरू हो जाता है जिसके दौरान ग्राहक को इनको पढ़कर यह तय करना होता है कि उसको पॉलिसी रखनी है या फिर सरेंडर करनी है।
इसीलिए यह नियम बनाया गया है कि ग्राहक को पर्याप्त समय फ्री लुक पीरियड के रूप में दिया जाए। जिसके दौरान ग्राहक अपनी पॉलिसी में दिए गए नियम और शर्तों को अच्छी तरह से जान और समझ ले।
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बीमा एजेंट अपनी ओर से ही ग्राहक को बढ़ा चढ़ाकर में बीमा पॉलिसी के लाभ बता देते हैं जो कि असल में उनकी पॉलिसी में कवर नहीं किए जाते। ऐसी पॉलिसी मिस-सेलिंग जैसी स्थितियों से ग्राहक को बचाने के लिए भी फ्री लुक पीरियड काम में आता है।
यहां पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जब आप कूलिंग पीरियड में पॉलिसी सरेंडर करते हैं तो आपकी बीमा कंपनी जितनी देर तक आपको कवर प्रदान किया गया है तब तक का प्रीमियम काट सकती है।
उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आपने पॉलिसी दस्तावेज मिलने के 10 दिन के बाद अपनी पॉलिसी सरेंडर की है। तो इस स्थिति में आपकी बीमा कंपनी 10 दिन का प्रीमियम काट सकती है। क्योंकि इस अवधि के दौरान अगर आपको कुछ हो जाता तो आप बीमा दावा कर सकते थे और बीमा कंपनी को भी वह क्लेम भरना पड़ता। क्योंकि बीमा कंपनी ने आपको इस अवधि के दौरान कवर प्रदान किया था तो इसीलिए वह उस अवधि का प्रीमियम ले सकती है।
फ्री लुक पीरियड से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
- फ्री लुक पीरियड की अवधि 10 दिन से लेकर 15 दिन या उससे अधिक भी हो सकती है यह आपकी पॉलिसी पर निर्भर करता है।
- पॉलिसी सरेंडर करने की स्थिति में बीमा कंपनी जब तक का कवर प्रदान किया गया है तब तक का प्रीमियम काट सकती है।
- कूलिंग पीरियड में पॉलिसी बंद करने के लिए आपको लिखित में बीमा कंपनी में आवेदन करना पड़ता है।
- अगर इस अवधि में बीमा कंपनी पॉलिसी वापस लेने से इंकार करती है तो आप बीमा लोकपाल से शिकायत कर सकते हैं।
- अगर आपको बीमा एजेंट द्वारा गलत पॉलिसी बेची गई है तो आप अपनी पॉलिसी को इस अवधि के दौरान वापस कर सकते हैं
- फ्री लुक पीरियड के दौरान अगर आपको लगता है कि आपकी पॉलिसी आपके लिए सही नहीं है या आपने गलती से यह पॉलिसी ले ली है तो आप अपनी पॉलिसी को वापस कर सकते हो। इस स्थिति में बीमा कंपनी भी आपका प्रीमियम वापस करने से मना नहीं कर सकती
- एक बार कूलिंग पीरियड खत्म होने के बाद बीमा पॉलिसी बंद करना सही नहीं होगा क्योंकि आपको आपका दिया गया प्रीमियम वापस नहीं मिलेगा।
- फ्री लुक पीरियड सभी जीवन बीमा उत्पादों पर लागू होता है और कई बार सेहत बीमा और दूसरे सामान्य बीमा उत्पादों पर भी यह सुविधा मिलती है।
- कूलिंग पीरियड के दौरान पॉलिसी बंद करने पर आपको सेरेंडर चार्जर भी नहीं देने पड़ते।
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