म्यूचुअल फंड क्या है? म्यूचुअल फंड के प्रकार

म्यूचुअल फंड एक अद्वितीय, व्यावसायिक रूप से प्रबंधित योजना होती है जिसके द्वारा सभी निवेशक एक ही प्लेटफार्म से अनेकों सिक्योरिटी में निवेश कर सकते हैं जैसे कि बॉन्ड, स्टॉक, शॉर्ट टर्म डेब्ट एवं ऐसेट्स आदि। फंड प्रबंधक का प्रमुख उद्देश्य होता है म्यूचुअल फंड को संचालित करना, फंड की संपत्ति को आवंटित करना एवं निवेश के लाभ को सुनिश्चित करना। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए फंड मैनेजर अनुसंधान एवं विश्लेषण के आधार पर सिक्योरिटी के पोर्टफोलियो का प्रारूप तैयार करते हैं। पोर्टफोलियो सभी प्रकार की सिक्योरिटी का संग्रह होता है उदाहरण के तौर पर बॉन्ड, स्टॉक, शॉर्ट टर्म डेब्ट एवं ऐसेट्स आदि।

म्यूच्यूअल फंड धारक को उनके निवेश के अनुपात में म्यूचुअल फंड के यूनिट जारी करता है इसलिए म्यूच्यूअल फंड धारक को प्राप्त होने वाला लाभांश उनके म्यूचुअल फंड की यूनिट की संख्या पर निर्भर करता है। म्यूचुअल फंड की एक यूनिट के मूल्य को नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) कहा जाता है।

म्यूचुअल फंड के प्रकार

म्यूच्यूअल फंड्स को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • एसेट क्लास के आधार पर
  • संरचना के आधार पर
  • जोखिम के आधार पर
  • निवेश के उद्देश्य के आधार पर
  • विशेषता के आधार पर

एसेट क्लास के आधार पर वर्गीकरण

एसेट क्लास के आधार पर म्युचुअल फंड को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

डेब्ट फंड: डेब्ट फंड वे फंड होते हैं जिसमें निवेशक को एक निश्चित ब्याज दर के आधार पर रिटर्न प्राप्त होता है। डेब्ट फंड सभी प्रकार की फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं उदाहरण के तौर पर सरकारी सिक्योरिटी, कॉरपोरेट बांड एवं ट्रेजरी बिल आदि। यह उन निवेशकों के लिए लाभप्रद है जो न्यूनतम जोखिम के साथ निरंतर रिटर्न चाहते हैं।

हाइब्रिड फंड: हाइब्रिड फंड इक्विटी फंड तथा डेब्ट फंड के मिश्रण द्वारा तैयार एक संतुलित फंड है। हाइब्रिड फंड उन निवेशकों के लिए है जो कम जोखिम तथा कम रिटर्न की अपेक्षाकृत अत्यधिक जोखिम तथा अत्यधिक रिटर्न के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं। इसमें इक्विटी फंड तथा डेब्ट फंड का अनुपात स्थिर एवं अस्थिर हो सकता है।

इक्विटी फंड: इक्विटी फंड वे फंड होते हैं जिसमें सभी निवेशकों से एकत्रित धन का स्टॉक मार्केट में निवेश किया जाता है। इसमें निवेशक को होने वाले हानि या लाभ स्टॉक मार्केट के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करते हैं। इक्विटी फंड को इसी कारण स्टॉक फंड भी कहा जाता है।

मनी मार्केट फंड: मनी मार्केट फंड वे फंड होते हैं जिनकी जिनकी अवधि लगभग 1 वर्ष होती है। फंड मैनेजर निवेशकों के धन को ट्रेजरी बिल, रिपरचेज एग्रीमेंट, बॉन्ड, डेटेड सिक्योरिटी, कमर्शियल पेपर, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट आदि में निवेश करता है तथा निवेशक को निरंतर लाभांश प्रदान करता है।

संरचना के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

ओपन एंडेड फंड: ओपन एंडेड म्युचुअल फंड का अर्थ है वे फंड जिनमें निवेशक कभी भी प्रवेश(एंटर) एवं निकास( एग्जिट) कर सकता है। निवेशक एक निश्चित अवधि से पहले एग्जिट ना करें, इसके लिए भी एग्जिट लोड(एक प्रकार का शुल्क) का प्रावधान मौजूद होता है। स्टॉक मार्केट में किसी भी कंपनी द्वारा नए शेयर उत्पन्न नहीं किए जा सकते हैं( इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग को छोड़कर), इसके विपरीत ओपन एंडेड म्युचुअल फंड में नए शेयर उत्पन्न किए जा सकते हैं एवं नए निवेशकों को जारी किए जा सकते हैं। आमतौर पर ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड को म्यूचुअल फंड ही कहा जाता है। सबसे अधिक जारी किए जाने वाले म्यूचुअल फंड में, ओपन एंडेड म्युचुअल फंड सबसे अग्रणी है।

क्लोज एंडेड फंड: क्लोज एंडेड म्युचुअल फंड के शेयर स्टॉक मार्केट में मौजूद किसी कंपनी के शेयर की भांति ही जारी किए जाते हैं। क्लोज एंडेड म्युचुअल फंड का अर्थ है वे फंड जिन्हें शेयर मार्केट में इनिशियल पब्लिक आफरिंग द्वारा जारी किया जाता है। इनके शेयर स्टॉक मार्केट में ठीक उसी प्रकार सूचीबद्ध होते हैं जैसे किसी अन्य कंपनी के शेयर। इनके शेयरों की ट्रेडिंग अन्य शेयर की भांति ही होती है, जिसमें निवेशक अपने शेयर किसी अन्य निवेशक को तो बेच सकता है परंतु इन्हें पुन फंड को बेच नहीं सकता। निवेशक द्वारा शेयर प्रीमियम या डिस्काउंट पर बेचे जाते हैं। यदि शेयर की मार्केट वैल्यू शेयर की नेट एसेट वैल्यू से अधिक हो तो इस स्थिति में शेयर प्रीमियम पर बेचे जाते हैं और इसके विपरीत यदि शेयर की मार्केट वैल्यू शेयर की नेट एसेट वैल्यू से कम हो तो इस स्थिति में शेयर डिस्काउंट पर बेचे जाते हैं।

इंटरवल फंड: इंटरवल फंड वे फंड होते हैं जो एक निश्चित अंतराल के दौरान ही खरीद-फरोख्त के लिए उपलब्ध होते हैं। यह अंतराल मासिक, त्रैमासिक अथवा वार्षिक भी हो सकती है। इंटरवल फंड में अत्यधिक लिक्विडिटी मिलती है क्योंकि कम अवधि में एंटर(खरीदना) और एग्जिट(बेचना) की अनुमति होती है।

जोखिम के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

कम जोखिम वाले फंड: कम जोखिम वाले फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेशक की सर्वोच्च प्राथमिकता निवेश किए गए धन को सुरक्षित करना होता है। निवेशकों को निवेश किए गए धन की सुरक्षा के साथ न्यूनतम लाभांश भी प्राप्त होते हैं। इनकी समय अवधि 1 माह से लेकर 1 वर्ष हो सकती है।

मध्यम से कम जोखिम वाले फंड: माध्यम से कम जोखिम वाले फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेशक अच्छे रिटर्न प्राप्त करने के लिए एक सीमित जोखिम उठाने को तैयार रहता है। इनकी समय अवधि 1 वर्ष से लेकर 3 वर्ष तक हो सकती है।

मध्यम जोखिम वाले फंड: मध्यम जोखिम वाले फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेशक अधिक रिटर्न प्राप्त करने के लिए मध्यम जोखिम सहन करने के लिए तैयार रहता है। यह फंड मध्यम अवधि से लेकर दीर्घ अवधि वाले हो सकते हैं।

मध्यम से अधिक जोखिम वाले फंड: मध्यम से अधिक जोखिम वाले फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेशक अत्यधिक रिटर्न प्राप्त करने के लिए अधिक जोखिम उठाने के लिए इच्छुक होता है। यह फंड मध्यम अवधि से लेकर दीर्घावधि वाले हो सकते हैं।

अधिक जोखिम वाले फंड की समय अवधि: अधिक जोखिम वाले फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेशक सर्वाधिक रिटर्न प्राप्त करने के लिए मूलधन के अत्यधिक जोखिम से भली भांति परिचित होते हैं एवं इसे सहन करने के लिए तैयार रहते हैं। यह फंड दीर्घावधि वाले होते हैं।

निवेश के आधार पर वर्गीकरण

डेब्ट फंड: डेब्ट फंड वे होते हैं जिनमें निवेश का अधिकतर भाग फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में लगाया जाता है उदाहरण के तौर पर गवर्नमेंट सिक्योरिटी आदि। इस प्रकार के फंड का सर्वोच्च उद्देश्य निवेशक को बिना जोखिम उठाए रिटर्न प्रदान करना होता है। इसलिए इन्हें इनकम फंड भी कहा जाता है।

इक्विटी फंड: इक्विटी फंड वे फंड होते हैं जिनमें निवेश का अधिकतर भाग इक्विटी तथा इक्विटी संबंधित सिक्योरिटी में लगाया जाता है। इस प्रकार के फंड का सर्वोच्च उद्देश्य निवेशकों के अतिरिक्त धन को अत्यधिक जोखिम वाली योजनाओं में निवेश करना तथा निवेशकों को दीर्घकालिक रिटर्न प्रदान करना है।

फिक्स्ड मैच्योरिटी फंड: फिक्स्ड मैच्योरिटी फंड के अंतर्गत क्लोज एंडेड डेब्ट फंड में निवेश किया जाता है, जिनकी एक निर्धारित मैच्योरिटी डेट होती है। इसकी अवधि 1 माह से लेकर 5 वर्ष तक हो सकती है।

कैपिटल प्रोटेक्शन फंड: कैपिटल प्रोटेक्शन फंड का प्रमुख उद्देश्य निवेश की गई पूंजी की सुरक्षा होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए निवेश को इक्विटी तथा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में बांट दिया जाता है।

लिक्विड फंड: लिक्विड फंड निवेशकों को लिक्विडिटी, निवेश किए गए धन को संरक्षण और मध्यम रिटर्न प्रदान करता है। इसमें निवेश करने की अधिकतम सीमा ₹1000000 है। इस प्रकार के फंड की अधिकतम सीमा 3 माह की होती है।

टैक्स सेविंग फंड: टैक्स सेविंग फंड वे फंड होते हैं जो ना केवल निवेशक को उचित रिटर्न प्रदान करते हैं अपितु उसकी आय पर लगने वाले करों की भी बचत करते हैं। इस प्रकार के फंड वेतन भोगी निवेशकों के लिए उपयुक्त होते है तथा यह सामान्य रूप से दीर्घावधि के होते हैं। इस प्रकार के फंड में पूंजी के अधिकांश भाग का निवेश इक्विटी स्टॉक में किया जाता है और इसकी निश्चित अवरुद्धता अवधि(लॉक इन पीरियड) 3 वर्ष की होती है। इस प्रकार के फंड को इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम(इएलएसएस) भी कहा जाता है। इसके द्वारा निवेशक को बचत में अधिकतम ₹150000 की छूट मिलती है।

पेंशन फंड: पेंशन फंड वे फंड होते हैं जिनमें दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निवेश किया जाता है। यह फंड किसी निवेशक के सेवानिवृत्त होने के पश्चात उनके आकस्मिक व्यय का ध्यान रखता है। पेंशन फंड की पूंजी का इक्विटी तथा डेब्ट सिक्योरिटी में निवेश किया जाता है। पेंशन फंड के रिटर्न को निवेशक एकमुश्त, नियमित पेंशन अथवा दोनों के सम्मिश्रण के रूप में भी प्राप्त कर सकता है।

विशेषता के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार

ऐसेट एलोकेशन फंड: एसेट एलोकेशन फंड वे फंड होते हैं जिनमें डेब्ट, इक्विटी तथा गोल्ड को सर्वोत्तम अनुपात में संगठित किया जाता है। यह हाइब्रिड फंड की भांति ही होता है परंतु इसके पोर्टफोलियो में संग्रहित होने वाले स्टॉक और बॉन्ड के चुनाव के लिए फंड मैनेजर को अत्यधिक अनुभवी एवं निपुण होना चाहिए।

कमोडिटी केंद्रित स्टॉक फंड: कमोडिटी केंद्रित स्टॉक फंड वे फंड होते हैं जिनका निवेश कमोडिटी मार्केट में किया जाता है। निवेशक को प्राप्त होने वाला रिटर्न, मार्केट में कमोडिटी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है।

उभरते मार्केट फंड: उभरते मार्केट फंड विकासशील देशों में उपलब्ध होते हैं जो कि आर्थिक रूप से गतिशील होते हैं परंतु एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यह जोखिम से परिपूर्ण होते हैं क्योंकि इन से प्राप्त होने वाले रिटर्न विकासशील देश की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं।

फंड ऑफ फंड्स: फंड ऑफ फंड्स को मल्टी मैनेजर फंड्स भी कहा जाता है। इस प्रकार के फंड का निवेश अन्य म्यूचुअल फंड में किया जाता है। निवेशक का रिटर्न लक्षित म्यूच्यूअल फंड पर निर्भर करता है।

गिफ्ट फंड: गिफ्ट फंड वे फंड होते हैं जो निवेशक द्वारा अपने प्रियजनों को उनके उज्जवल भविष्य के लिए उपहार में दिए जाते हैं।

ग्लोबल फंड: ग्लोबल फंड वे फंड होते हैं जो पूंजी को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में निवेश करने की अनुमति प्रदान करते हैं। ग्लोबल फंड अत्यधिक जोखिम से परिपूर्ण होते हैं परंतु दीर्घकालिक एवं उच्च रिटर्न प्रदान करते हैं।

इंटरनेशनल फंड: इंटरनेशनल फंड वे फंड होते हैं जो पूंजी को केवल विदेशी मार्केट में निवेश की अनुमति प्रदान करते हैं। पूंजी को घरेलू मार्केट में निवेश की अनुमति नहीं होती है।

इन्वर्स फंड: इन्वर्स फंड वे फंड होते हैं जो मार्केट के प्रतिकूल रिटर्न प्रदान करते हैं। यदि मार्केट में गिरावट हो तो यह रिटर्न प्रदान करते हैं और यदि मार्केट में उछाल हो तो हानि प्रदान करते हैं। यह अत्यधिक जोखिम से परिपूर्ण होते हैं क्योंकि यह अत्यधिक रिटर्न एवं अत्यधिक हानि प्रदान करने वाले फंड होते हैं।

मार्केट न्यूट्रल फंड: मार्केट न्यूट्रल फंड वे फंड होते हैं जो बिना मार्केट के उतार-चढ़ाव से बिना प्रभावित हुए उचित रिटर्न प्रदान करते हैं। इस प्रकार के फंड मार्केट के जोखिम को सीमित करते हैं क्योंकि यह मार्केट के उतार-चढ़ाव में रिटर्न उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं।

रियल एस्टेट फंड: रियल एस्टेट फंड अपनी पूंजी का निवेश रियल एस्टेट व्यवसाय में करते हैं। रियल एस्टेट फंड में पूंजी निवेश करने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है।

सेक्टर फंड: सेक्टर फंड वे फंड होते हैं जिनका निवेश शुरुआत से ही किसी विशेष सेक्टर में किया जाता है। इस प्रकार के फंड को प्राप्त होने वाले रिटर्न केवल उसी सेक्टर के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करते हैं।

म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है?

म्यूचुअल फंड में निवेश करना अति सरल होता है। म्यूचुअल फंड में निवेश का प्रबंधन एसेट प्रबंधन कंपनी करती है और यह कंपनी निवेशकों के धन की सुरक्षा के लिए उत्तरदाई भी होती है। म्यूचुअल फंड धारक को उनके निवेश के अनुपात में म्यूचुअल फंड के यूनिट्स जारी करता है इसलिए म्यूच्यूअल फंड धारक को प्राप्त होने वाला लाभांश उनके म्यूचुअल फंड की यूनिट की संख्या पर निर्भर करता है।

एक निवेशक को प्राप्त होने वाले प्रत्येक यूनिट कि नेट ऐसेट वैल्यू ज्ञात करने के लिए म्यूचुअल फंड के नेट एसेट (म्यूचुअल फंड में संग्रहित कुल राशि) में से नेट लायबिलिटी (देनदारियों) को घटाया जाता है एवं उसके पश्चात बची राशि को नंबर ऑफ यूनिट आउटस्टैंडिंग (जारी की गई यूनिट की संख्या) से विभाजित किया जाता है।

एनएवी = (एसेट – लायबिलिटी) / नंबर ऑफ यूनिट आउटस्टैंडिंग

निवेशक म्यूचुअल फंड का चुनाव करता है तथा इसमें निवेश करता है। फंड मैनेजर अपनी निपुणता एवं अनुभव और मार्केट के अनुसंधान एवं विश्लेषण द्वारा निवेशकों का धन का सही आवंटन करता है। इसलिए म्यूचुअल फंड निवेशकों में अधिक लोकप्रिय है। फंड मैनेजर द्वारा तैयार किए गए पोर्टफोलियो म्यूचुअल फंड के उद्देश्य पर आधारित होती है।

म्यूचुअल फंड में निवेशको से एकत्रित पूंजी का एसेट क्लास के अनेकों भागों में निवेश किया जाता है उदाहरण के तौर पर इक्विटी, डेब्ट, स्टॉक, बॉन्ड, गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी आदि। इस प्रकार निवेशक एक ही समय में अनेकों सिक्योरिटी में निवेश कर विविधता का लाभ उठा सकते हैं।

म्यूचुअल फंड में इक्विटी फंड तथा डेब्ट फंड का मिश्रण अत्यधिक सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि एक तरफ इक्विटी फंड लाभकारी रिटर्न प्रदान करता है तथा दूसरी ओर डेब्ट फंड उचित रिटर्न के साथ स्थिरता प्रदान करते हैं। इस प्रकार म्यूचुअल फंड में निवेश करना अति सरल, अति लाभकारी तनाव रहित एवं कम जोखिम से परिपूर्ण होता है।

म्यूचुअल फंड की प्रत्येक यूनिट नेट एसेट वैल्यू तथा मार्केट वैल्यू क्या अंतर होता है?

प्रत्येक यूनिट कि नेट ऐसेट वैल्यू ज्ञात करने के लिए म्यूचुअल फंड के नेट एसेट में से नेट लायबिलिटी को घटाया जाता है एवं उसके पश्चात बची राशि को नंबर ऑफ यूनिट आउटस्टैंडिंग से विभाजित किया जाता है।

एनएवी = (एसेट – लायबिलिटी) / नंबर ऑफ यूनिट आउटस्टैंडिंग। नेट ऐसेट वैल्यू किसी भी ट्रेडिंग डे के अंत में ज्ञात की जा सकती है।

प्रत्येक यूनिट की करंट वैल्यू ही उसकी मार्केट वैल्यू होती है प्रत्येक यूनिट की मार्केट वैल्यू, उसकी मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। मार्केट वैल्यू ट्रेडिंग डे के दौरान कभी भी देखी जा सकती है।

म्यूचुअल फंड के फायदे

म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए अनेकों प्रकार से फायदेमंद है:

विविधता: म्यूच्यूअल फंड्स में किसी विशेष सिक्योरिटी की अपेक्षाकृत सिक्योरिटी की विस्तृत श्रृंखला में निवेश किया जाता है। इसके द्वारा यदि कुछ सिक्योरिटी में गिरावट आती है तो अन्य सिक्योरिटी इसे सहन करती हैं एवं निवेशक को लाभकारी रिटर्न प्रदान करती हैं।

आसान पहुंच: म्यूचुअल फंड में निवेशक कभी भी प्रवेश (एंटर) एवं निकास (एग्जिट) कर सकता है। निवेशक एक निश्चित अवधि से पहले एग्जिट ना करें, इसके लिए भी एग्जिट लोड (एक प्रकार का शुल्क) लागू होता है।

फंड मैनेजर: फंड मैनेजर अपनी निपुणता एवं अनुभव और मार्केट के अनुसंधान एवं विश्लेषण द्वारा निवेशकों का धन का सही आवंटन करता है। फंड मैनेजर का मुख्य उद्देश्य निवेशक को अत्यधिक लाभ प्रदान करना होता है। फंड मैनेजर द्वारा तैयार किए गए पोर्टफोलियो म्यूचुअल फंड के उद्देश्य पर आधारित होती है।

व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति: म्यूच्यूअल फंड्स व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। निवेशकों के लिए सभी प्रकार म्यूच्यूअल फंड्स उपलब्ध होते हैं उदाहरण के तौर पर पेंशन फंड, रियल एस्टेट फंड, गिफ्ट फंड आदि।

कर में बजत: म्यूच्यूअल फंड निवेशक को उचित रिटर्न प्रदान करते हैं तथा उसकी आय पर लगने वाले करों की बचत करते हैं उदाहरण के तौर पर इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (इएलएसएस) जिसमें निवेशक को बचत में अधिकतम ₹150000 की छूट मिलती है।

न्यूनतम ट्रांजैक्शन शुल्क: म्यूचुअल फंड में निवेशक एक ही प्लेटफार्म से अनेकों सिक्योरिटी में निवेश करता है परंतु इसके लिए प्रत्येक सिक्योरिटी पर शुल्क लागू नहीं होता है। निवेशक द्वारा केवल ट्रांजैक्शन एवं फंड प्रबंधन शुल्क अदा करने होते हैं।

म्यूचुअल फंड के नुकसान

म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए निम्न रूप से नुकसानदायक हो सकते हैं:

  • अनिश्चित रिटर्न: म्यूचुअल फंड में होने वाले उतार-चढ़ाव स्टॉक मार्केट पर निर्भर करते हैं। वे निवेशक जो कम समय में अत्यधिक लाभ कमाना चाहते हैं वह कई बार असफल हो जाते हैं परंतु वे निवेशक जो दीर्घकालिक म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं वह अत्यधिक लाभ प्राप्त करते हैं।
  • व्यय अनुपात: म्यूचुअल फंड के रखरखाव में होने वाले प्रति यूनिट खर्च को व्यय अनुपात कहा जाता है। शुरुआत में यह खर्च बहुत सामान्य लगता है परंतु दीर्घकालीन अवधि के दौरान यह काफी अधिक हो जाता है। इसके अलावा यदि निवेशक समय अवधि से पूर्व अपनी यूनिट को बेचना चाहते हैं तो इसके लिए उस पर एग्जिट लोड भी लागू होता है।
  • कैपिटल गैन पर कर: म्यूचुअल फंड के निवेशक द्वारा संपत्ति को बेचकर प्राप्त होने वाले लाभ को कैपिटल गेन कहा जाता है। 1 वर्ष या उससे कम अवधि के लिए रखी गई यूनिट पर प्राप्त होने वाले लाभ को एसटीसीजी (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन) तथा 1 वर्ष अधिक अवधि के लिए रखी गई यूनिट पर प्राप्त होने वाले लाभ को एलटीसीजी (लोंग टर्म कैपिटल गेन) कहा जाता है। एसटीसीजी एवं एलटीसीजी पर सरकार द्वारा कर लगाया जाता है।
  • अनियंत्रित निवेश: सभी प्रकार के म्यूचुअल फंड मैनेजर द्वारा प्रबंधित होते हैं। निवेश से संबंधित सभी निर्णय फंड मैनेजर द्वारा लिए जाते हैं। म्यूच्यूअल फंड्स में होने वाले निवेश पर निवेशक का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
  • फंड का मूल्यांकन: म्यूचुअल फंड की नेट एसेट वैल्यू के द्वारा निवेशक पोर्टफोलियो के फंड का मूल्यांकन कर सकते हैं। निवेशकों के लिए अनेकों फंड का अनुसंधान एवं विश्लेषण करना कठिन होता है क्योंकि उनके पास फंड मैनेजर के समान निपुणता एवं अनुभव की कमी होती है।
  • रेटिंग और विज्ञापन: म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय निवेशक को फंड की रेटिंग तथा विज्ञापन की अपेक्षा कंपनी की पारदर्शिता, आचारसंहिता, पारदर्शिता, प्रतिष्ठा एवं निवेश नीति को ध्यान में रखना चाहिए।

म्यूचुअल फंड में कैसे निवेश करें?

आप म्यूचुअल फंड में निवेश किसी फंड हाउस या किसी स्टॉक ब्रोकर के द्वारा कर सकते हैं। भारत के मशहूर फंड हाउस है: एसबीआई म्युचुअल फंड, एचडीएफसी म्युचुअल फंड, एक्सिस बैंक म्यूच्यूअल फंड, एडलवाइज म्युचुअल फंड हाउस इत्यादि।

मैं व्यक्तिगत तौर पर नीचे दिए गए स्टॉक ब्रोकर में आपको अकाउंट खोलने की सलाह देता हूं:

इसी तरह अगर आप किसी स्टॉक ब्रोकर के द्वारा म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं तो यहां हम भारत के मशहूर स्टॉक ब्रोकर की सूची दे रहे हैं। जिनमें आप अपना अकाउंट खुलवा कर म्यूचल फंड में निवेश कर सकते हैं। इनमें अकाउंट खुलवा कर म्यूचुअल फंड में निवेश करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आप सीधे किसी शेयर को भी खरीद सकते हैं। और यह म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए आपसे कोई किसी भी तरह का अतिरिक्त चार्ज नहीं लेते हैं शुल्क नहीं लेते हैं।